Delhi राहुल गांधी के खिलाफ विपक्ष ने हाल ही में आरोप लगाया है कि वे “वोट चोरी” के मुद्दे में बुरी तरह घिर गए हैं।
इस मामले को लेकर राजनीतिक हलकों में जोरदार बयानबाज़ी हो रही है और भाजपा सहित कई दल इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारी में हैं।
क्यों आया “वोट चोरी” का मुद्दा?
-
विपक्ष का आरोप है कि कांग्रेस ने कुछ सीटों पर धांधली कर चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित किया।
-
राहुल गांधी पर सीधे निशाना साधते हुए विरोधी दल कह रहे हैं कि वे लोकतंत्र की रक्षा की बात करते हैं लेकिन “वोट चोरी” के आरोपों से खुद को बचा नहीं पा रहे।
-
सोशल मीडिया और जनसभाओं में भी यह विषय तेजी से चर्चा में है।
राहुल गांधी की स्थिति
-
राहुल ने इन आरोपों को नकारा है और कहा है कि यह केवल उन्हें बदनाम करने की राजनीतिक साजिश है।
-
हालांकि, पार्टी कार्यकर्ताओं को समझाने और जनता तक सही संदेश पहुँचाने के लिए कांग्रेस को अब डैमेज कंट्रोल की रणनीति अपनानी पड़ रही है।
राजनीतिक असर
-
यदि यह मुद्दा और भड़कता है, तो राहुल की छवि पर गहरा असर पड़ सकता है।
-
विपक्ष इसे आगामी चुनावों में जनता के बीच बार-बार उठाकर कांग्रेस को घेरने की कोशिश करेगा।
-
दूसरी ओर, कांग्रेस इसे “भ्रम फैलाने का हथकंडा” बताकर पलटवार कर रही है।
राहुल गांधी के आरोप
राहुल गांधी ने समय-समय पर यह दावा किया है कि भारत में चुनाव प्रक्रिया में हेरफेर हो रहा है, वोटर्स की सूची से नाम हटाए जा रहे हैं, फर्जी नामों को जोड़ा जा रहा है, और विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ कांग्रेस की उम्मीद होती है, वोटिंग या मतगणना में अनियमितताएँ हो रही हैं।
कुछ विशेष बिंदु जहाँ राहुल ने आरोप लगाए हैं:
-
महादेपुरा विधानसभा क्षेत्र, बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा क्षेत्र में, उन्होंने कहा कि लगभग 6.5 लाख वोटर्स की सूची में से 1,00,250 वोट “चोरी” हुए हैं — यानी कि लगभग 1 वोट में से 6 वोट प्रभावित।
-
अलंद विधानसभा क्षेत्र (कर्नाटक, कालबुरगी जिला) में, राहुल ने कर्नाटक के चुनाव के पहले वहाँ पर वोटर्स की सूची से बड़े पैमाने पर नामों को हटाए जाने का दावा किया है।
-
राजुरा (चंद्रपुर, महाराष्ट्र) में, कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि लगभग 6,800 वोटर्स की entries को हटाया गया था, जो कांग्रेस उम्मीदवार के लिए हानिकारक था।
-
राहुल गांधी ने यह भी कहा है कि बीते चुनावों में उम्मीदवारों के बीच असामान्य अंतर आए जिनके पीछे “वोट चोरी” हो सकती है — इकट्ठे वोटर्स की सूची में फर्जी नाम, एक ही व्यक्ति द्वारा कई बार नाम, आदि।
https://chanakyanewsindia.com/17955/
निर्वाचन आयोग (ECI) का जवाब
इन आरोपों पर ECI और अन्य कारकों की प्रतिक्रिया इस प्रकार रही है:
-
निर्वाचन आयोग ने राहुल गांधी के अधिकांश आरोपों को “बेज़बन” (baseless), “अविश्वसनीय,” “गलत” और “misleading” बताया है।
-
ECI ने कहा है कि वोटर सूची से नाम हटाने की प्रक्रिया “ऑनलाइन” तरीके से नहीं हो सकती, और इस तरह के दावे कानूनी प्रक्रिया और नियमों के अंतर्गत नहीं आते।
-
आयोग ने राहुल गांधी से आग्रह किया है कि यदि उनके पास सबूत हैं तो वे उन्हें प्रमाणित करें; अन्यथा उन आरोपों के लिए मافی माँगे, क्योंकि ऐसे आरोप निर्वाचन प्रक्रिया और चुनाव अधिकारियों की निष्पक्षता पर असर डालते हैं। आयोग ने यह भी कहा कि कांग्रेस पार्टी (या राहुल गांधी) ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान प्रतिवादी दलों के खिलाफ चुनाव न्यायालयों या उच्च न्यायालयों में पर्याप्त चुनाव याचिकाएँ (election petitions) दाख़िल नहीं की हैं।
किन कारणों से ये विवाद उठा है (राजनीतिक व व्यवहारिक संदर्भ)
-
चुनावी फायदे: विपक्षी दलों का आरोप है कि यदि निर्वाचन प्रक्रिया में हेरफेर हो रहा है, तो वह वर्तमान सरकार या सत्ता पक्ष के लिए चुनावी लाभ सुनिश्चित करता है।
-
जनविश्वास की समस्या: जब मतदाता ये सुनते हैं कि वोट “चोरी हो रहे हैं,” तो लोकतंत्र की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठते हैं।
-
तकनीकी व प्रक्रिया संबंधी मुद्दे: वोटर सूची (electoral roll) बनाने, नाम जोड़ने-हटाने की प्रक्रिया, ऑनलाइन माध्यमों की भूमिका (यदि कोई हो), इलेक्ट्रॉनिक मुद्दें, डेटा की पारदर्शिता आदि।
वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ
-
प्रमाणों की पारदर्शिता: राहुल गांधी ने कई बार कहा है कि उनके पास “open & shut proof” है, लेकिन आयोग उनसे प्रमाणपत्र (affidavit), इलेक्ट्रॉनिक डेटा जैसे-की IP लॉग, वोटर नामों की सूची, पुनरीक्षण के लिए उठाए गए विवादों की रिपोर्ट आदि मांग रहा है।
-
कानूनी रास्ता: यदि चुनाव याचिकाएँ (election petitions) दायर की जाएँ, तो उन्हें अदालत में तर्क और प्रामाणिक दस्तावेजों के साथ पेश करना होगा।
-
मीडिया और राजनैतिक तनाव: यह मुद्दा चुनावों के पहले राजनीतिक गर्म मौसम का हिस्सा बन गया है; दोनों पक्ष बयानबाज़ी कर रहे हैं, सार्वजनिक रैलियाँ हो रही हैं, और विपक्षी नेता अपेक्षाकृत बड़े आरोप लगा रहे हैं।
संभावित परिणाम
-
यदि प्रमाण ईमानदारी से प्रस्तुत होते हैं, तो आयोग या न्यायालय को जांच करनी पड़ेगी, संभव है कि मतदाता सूची में हुई गलतियों की सफाई की जाए।
-
यदि आरोप गलत साबित होते हैं, तो विपक्ष की विश्वसनीयता प्रभावित हो सकती है।
-
अगले चुनावों में इस मुद्दे को बड़े स्तर पर उठाया जाएगा, प्रचार-रणनीति में शामिल होगा।
-
निर्वाचन कल्याण और कानून निर्माण प्रक्रिया में बदलाव की माँग हो सकती है — जैसे कि वोटर सूची बनाने की प्रक्रिया और ऑडिटिंग की पारदर्शिता बढ़ानी पड़े।
